Nature and Purpose of Mahabharata Education
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महाभारत में शिक्षा का स्वरूप जानने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों उसके काल-निर्धारण के विभिन्न मतों का वर्णन आवश्यक है। महाभारत आर्यों का प्राचीन एवं श्रेष्ठ महाकाव्य है। संस्कृत साहित्य में महाभारत को इतिहास पुराण माना गया है। इस ग्रंथ के रचयिता ऋषि ब्यास माने गये हैं। महाकाव्य की रचना के विषय में विद्वानों का मत है कि वे किसी एक युग में, या एक ही लेखक के द्वारा लिखित नहीं है। इसके मूल ग्रंथ में समयानुसार संशोधन, परिवर्द्धन और परिवर्तन भी किए गए हैं। कई विद्वानों ने इस कार्य में योगदान किया है। महाभारत महाकाव्य में अठारह पर्व और एक लाख श्लोक हैं। इस काव्य की व्यापकता के संबंध में विद्वानों में एकमत नहीं है। संस्कृत के पाश्चात्य विद्वान मेकडानल्ड का विचार है कि मूल महाभारत में केवल 20 हजार श्लोक थे। अलग-अलग युगों में भिन्न-भिन्न विद्वानों ने इसमें परिवर्तन किये हैं, महाभारत का उद्देश्य एक ओर तो धार्मिक है वहीं दूसरी ओर ऐतिहासिक एवं शैक्षणिक विशेषता का भी है। इस महाकाव्य में देश के प्राचीन वीरों और विरांगनाओं के पारस्परिक प्रण और विद्रोह, जय और पराजय की गाथाएँ तथा प्राचीन प्रचलित अनुश्रुतियों की संहिताएँ हैं। महाभारत के अध्ययन से इस तथ्य की जानकारी प्राप्त होती है कि किस प्रकार एक छोटे से महत्वहीन गृह-कलह से भारत में आर्यों की दीर्घकालीन विवादग्रस्त समस्याएँ प्रज्वलित हो उठी।
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